पूर्णिया।कार्तिकपूर्णिमाकीरातआयोजितहोनेवालेभाईबहनकेप्रेमकापर्वसामाचकेबाकोलेकरग्रामीणइलाकेकेघर-घरमेंगीतगूंजरहेहैं।मिथिलाचलवकोसीअंचलकीसंस्कृतिकायहपर्वधूमधामसेमनायाजारहाहै।वैसेइसकीपरंपराशहर-बाजारमेंलगभगसमाप्तहोगईहै,लेकिनग्रामीणअंचलमेंयहपर्वआजभीजीवितहै।इसपर्वकीतैयारीबहनेंवमहिलाएंछठपर्वकेसमापनकेसाथहीशुरूकरदेतीहैं।बड़ेजतनसेमिट्टीकीसामा,चकेवा,चुगला,पौटी,सरवारी,भैर,सतभैयाआदिमूर्तियाबनातीहैंतथाभाईउसेतोड़ताहै।येमूर्तियाविभिन्नरंगोंमेंरंगीजातीहैंऔरप्रतिदिनरात्रिमेंमहिलाएंसमूहमेंगीतगातीहैं।इसकारणगाव,घरगीतोंसेगुंजायमानहोतेरहतेहैं।अभयरामचकलाकेकारीमंडलटोला,सहुरियासुभायमिलिक,रामपुरतिलक,मधुबन,ईटहरीआदिगावोंकीमहिलाओंसेमिलीजानकारीअनुसारकार्तिकशुक्लसप्तमीसेशुरूहुएइसपर्वकासमापनपूर्णिमाकीरात्रिचुगलादहनकेसाथहोताहै।झुंडमेंगीतगातीहुईमहिलाएंमूर्तियाविसर्जनकरदेतीहैं।महिलाएंबतातीहैंकिकार्तिकपूर्णिमाकीरात्रिजोतेहुएखेतमेंमूर्तियाविसर्जनकेदौरानचुगलामेंआगलगाईजातीहैं।पटाखेभीछोड़ेजातेहैंऔरबहनेंअपनेभाइयोंकेहाथोंआगबुझवातीहैं।इसदौरानवृन्दावनमेंआगलागल,कोईनैयबुताबैछैय,सामाखेलैगेलियैहोभइया,चकेवालायगेलैचोरसरीखेलोकगीतोंसेवातावरणगुंजायमानहोजाताहै।कारीमंडलटोलाकीडेजीकुमारी,बेबीकुमारी,प्रियंकादेवी,सोनीदेवीकहतीहैंकिसामाचकेवापर्वमिथिलावकोसीकेइलाकेमेंधूमधामसेमनायाजाताहै।