जगमोहनसिंहराजपूत।द्वितीयविश्वयुद्धकेपश्चातस्वतंत्रहुएदेशोंमेंसेलगभगसभीनेऔपचारिकतौरपरजनतांत्रिकप्रणालीअपनानेकानिश्चयकिया।यहअलगतथ्यहैकिसभीइसमेंसफलनहींहोसके।कहींतानाशाहीतोकहींसेनासत्तापरकाबिजहोतीरही।इसकेउलटभारतमेंजनतांत्रिकप्रणालीजिसप्रकारप्रारंभहुईऔरअनवरतचलरहीहै,जिसकीअंतरराष्ट्रीयसंस्थाओंऔरविद्वानोंनेभीसमय-समयपरसराहनाकीहै।यहांजिसशांतिपूर्णढंगसेसत्ता-परिवर्तनहोतारहाहै,वहतमामलोगोंकोआश्चर्यचकितकरताहै।17अप्रैल,1999कोकेंद्रकीवाजपेयीसरकारमात्रएकवोटसेहारगई।इसकारणफिरसेचुनावहुआ।हरअवसरपरसत्तापरिवर्तनशब्दश:संवैधानिकव्यवस्थाकेअनुरूपहीहोतारहाहै।

नि:संदेहसमयकेसाथऔरनैतिकमूल्योंमेंगिरावटकेकारणकुछचिंताएंअवश्यसतारहीहैं।ऐसेमेंआजादीकाअमृतमहोत्सवमनारहेदेशकोयहध्यानमेंरखनाहोगाकिसमकालीनस्थितिकाउचितआकलनकियाजाए,ताकिहमअपनीलोकतांत्रिकप्रक्रियाओंपरइसीप्रकारगर्वकरतेरहें।जैसेघरकीस्वच्छतापरनिरंतरध्यानदेनाहोताहै,वैसेहीशासनव्यवस्थामेंकतिपयकारणोंसेआरहेपरिवर्तनोंकानिष्पक्षविश्लेषणभीआवश्यकहै।स्वतंत्रतासंग्रामकेतपेहुएहमारेसेनानीसंविधाननिर्माताबने।उन्होंनेभारतकेसमेकितविकासहेतुसमन्वय,सहयोग,समता,समानता,सहृदयताऔरसंवेदनशीलतासेओतप्रोतमार्गनिर्धारितकिया।उनकीअपेक्षातोयहीथीकिविविधतामेंएकताकेलिएविश्वविख्यातभारतवैश्विकसमाजकेसम्मुखसामजिक,सांस्कृतिकएवंपंथिकसद्भावकीव्यावहारिकताकासशक्तउदाहरणप्रस्तुतकरेगा।

विगतसातदशकोंमेंपरिवर्तनकीगतिबढ़ीहै।विज्ञान,तकनीकीऔरसंचारप्रौद्योगिकीनेसामाजिक,सांस्कृतिकऔरआर्थिकक्षेत्रोंमेंअकल्पनीयप्रभावडालेहैं।एकभाषा,संस्कृतिऔरमजहबकोमाननेवालेअनेकदेशोंमेंविभिन्नकारणोंसेआएप्रवासियोंनेजनसंख्याकीसंरचनाहीबदलदीहै।यूरोपकेकईदेशइसनईस्थितिसेनिपटनेमेंभारतकेलंबेअनुभवोंसेलाभउठानाचाहेंगे।ऐसेमेंयहभारतकानैतिकउत्तरदायित्वहैकिदेशमेंकिसीभीप्रकारकेवैमनस्यऔरअविश्वासकोबढ़नेसेरोकाजाए।इसकेलिएपर्याप्तसतर्कताबरतनीहोगी।

चीनऔरपाकिस्तानजैसेदेशभारतकीआंतरिकसद्भावनाकोध्वस्तकरनेकाहरसंभवकुत्सितप्रयासकरतेआएहैं,जिसमेंकोईकमीआनेकेआसारनहीं।दुर्भाग्ययहहैकिइनसेनिपटनेकेलिएराष्ट्रीयएकताकाजोस्पष्टसंदेशविश्वकेसमक्षजानाचाहिए,उसेतमामनेताऔरउनकेदलगहराईसेसमझनहींरहे।सर्जिकलस्ट्राइकसेलेकरएयरस्ट्राइकतकइसकेतमामउदाहरणहैं।नकारात्मकतासेग्रस्तकईविपक्षीदलउसवक्तराष्ट्रीयउत्तरदायित्वकीपूर्तिसेचूकगए।उन्हेंसमझनाहोगाकिकुतर्कोपरकीगईआलोचनासेकामनहींहोगा,परंतुहताशामेंवेयहीकरतेहैं।यहीहताशाउन्हेंयहस्वीकारनहींकरनेदेतीकिपिछलेछह-सातवर्षोकेदौरानहाशियेपरपड़ेतबकोंकोमुख्यधारामेंलानेकेलिएसरकारद्वाराकितनेबड़े-बड़ेकदमउठाएगएहैं।ऐसाहीएककदमकृषिकानूनथे,जोविपक्षकीनकारात्मकराजनीतिकीभेंटचढ़गए।इनकानूनोंकीवापसीसेकिसानोंकोहीनुकसानहुआहै।इसपरजश्ननहीं,अफसोसमनायाजानाचाहिए।

स्वतंत्रताकेबाददो-तीनदशकोंबादहीयहस्पष्टहोगयाथाकिचुनावोंकोसंविधानसम्यकभावनासेसंपादितकरानाअत्यंतदुरूहकार्यहै।नेताओंद्वाराबूथलूटनेसेलेकरपैसेबांटनेऔरशराबकाप्रलोभनदेनाआमहोगया।जिनदलोंकोइसेरोकनाचाहिएथादुर्भाग्यसेवहीइसेखाद-पानीदेतेरहे।साथहीसाथदेशमेंराजनीतिकेजातिकेंद्रितहोनेसेसंविधानकीमूलभावनाक्षीणहोतीगई।किस्म-किस्मकेजातीय-मजहबीसमीकरणबनाएजानेलगे।तुष्टीकरणकाबोलबालाबढ़तागया।जैसे-जैसेराष्ट्रीयस्तरपरस्वतंत्रतासेनानियोंकीपीढ़ीनेपथ्यमेंजातीरही,वैसे-वैसेक्षेत्रीयता,जातीयताऔरसांप्रदायिकताकीराजनीतिकरनेवालेसत्तातकपहुंचनेलगे।जाति,क्षेत्रयापंथआधारितऐसेदलकोईसकारात्मकराष्ट्रीयदृष्टिकोणनहींविकसितकरसके।उनमेंसेअनेकस्वार्थ,परिवारवादऔरव्यक्तिगतधनसंग्रहसेआगेनहींबढ़पाए।

भारतमेंलोकतंत्रकाअपेक्षितस्वरूपतभीबचेगाजबपक्षऔरविपक्षद्वारासिद्धांतोंकेप्रतिपूर्णप्रतिबद्धतास्वीकार्यहो।वहींविद्वतवर्गऔरसिविलसोसाइटीकोनिष्पक्षभावसेइसपरअपनीनिगाहबनाएरखनीहोगी।समझलीजिएकिभारतमेंजनतंत्रपरप्रहारतभीआरंभहुआजबचुनावखर्चकीसीमाओंकोलांघनाआमहोगया।पिछलेकईचुनावोंसेचुनावीखर्चसीमाकाखुलामखौलउड़ायाजारहाहै।जनताभलीभांतिजानतीहैकिचुनावअबसामान्यनागरिककेलिएएकअलभ्यसंभावनारहगएहैं।वहींचुनावोंमेंनैतिकमूल्योंकीगिरावटकापहलूऔरभीकष्टदायीहै।संविधाननिर्माताओंनेजिसअपेक्षाकेसाथराज्यसभाकासृजनकियाथा,वहउसलक्ष्यसेभटकगईहै।यहीहालराज्योंकीविधानपरिषदकाहै।

चुनावीराजनीतिमेंमूल्योंकेह्रासकापरिणामहैकिजनताद्वाराखारिजकिएगएअधिकांशनेताऔरराजनीतिकदलसकारात्मकदृष्टिगंवाचुकेहैं।कोरोनासंकटकेसमयकोहीयादकरेंकिकितनेदलउसवक्तसरकारकेसाथसहयोगकेलिएआगेआए।वेकेवलआलोचनामेंहीअपनेकर्तव्यकीइतिश्रीमानतेरहे।देशकीयुवापीढ़ीकोहीइसस्थितिकोसमझनेऔरउसमेंसुधारकरनेकाउत्तरदायित्वलेनाहोगा।

(लेखकशिक्षाएवंसामाजिकसद्भावकेक्षेत्रमेंकार्यरतहैं)